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________________ - - आर्यसमाजकेनियम ||२॥ सबमन्यविद्या औरनोपदार्थ विद्यामेजाने जाते हैं उनका प्रादिमूलप २. ईश्वरसच्चिदानन्दस्वरूप निराकार सर्वशक्तिमान् न्यायकारी, दयालु अजन्मा अनन्त निर्विर अनादि अनुपम सर्वाधार सर्वेश्वर सर्वव्यापक सर्वान्तर्यामी अजर अमर अभय नित्य पक्निीरसृष्टिकर्ताहै - उसीकी उपासना करनीयोग्यहै ... ३. वेदसन्यविद्याअंकापुलकहैवेदकापदना पदाना । औरमुन्नासुनानासबन्ना-कोपरमधर्महै ४॥ सत्यग्रहण करने और असत्यके छोडनेमेसर्वदायन | रत्नाचाहिये ॥ सवकामधर्मानुसारजनसत्य औरषमत्यकोविचा ॥ .रकरकें करने चाहिये। . ॥६। संसारका उपकारकग्नाइससमाजकामुख्य उद्देश्यहै प्रर्थातशारीरिक मामिकसामाजिक उन्ननिकरना। ७। सबसे प्रीतिपूर्वकधर्मानुसारयथायोग्यवर्तनाचाहिये। | अविद्याकानाशीरविद्याकीरद्धिकरनी चाहिये। टी प्रत्येककोअपनी हीडनविसेनमंतुष्टरहनाचाहिये किन्न । सबकी उन्ननिमअपनीउन्ननिसममनीचाहिये॥ ॥ । सबमनुष्यों कोसामाजिकसर्वहितकारी नियमपाल, . . नेमें परतन्त्रमनाचाहिये घोरप्रत्येकहित्कारी नियममेंसबस्वतन्महैं। - - - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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