SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्पनरैजैसादो वैसा ही उसमें दीख पड़नाहै देखो हम नि पत्रा खोलनेही कह दिया था कि तुम्हारी हारहो गी इतने उपाय करने से भी यह चाल नस्लीपर वहतो महा राजभवभीनमम्मपने दिनभलेडीजा ना लिखानो ऐसाथा कि उस मनुष्य के हाथ से तुम्हा रा प्रारण घात होनाथा पर देवनाने सहायता करीउ ससमय हम तुम्हारे भय मान होने के कारण इस लिख को अपने मन ही मेंथाम लियाथा चलो अच्छा हवाधन पर पड़े भागवानकारजान परपडे निर भागी के महा गज यह बड़ा करूर ग्रहथा लिखाभी है किधनधान्य हिरन्य विनाश करारबिराह शनि श्वर भूमि सुना) अच्छा महाराज बहुत मन सोचमें संतोयही बड़ी बात है वह कैदिन तुम्हारा धनसा यगा तुमको परमात्मा और देगा अच्छा महाराज हमनो जाने हैं और भापकीजय मनाते हैं हमारातो यही मनोर्थहै कि तुम फूलो फलो चलो इनकोभी चलने समय दश पोच मिलही गये फिर दोनोंने पसमें जा गटे महीना बीस दिन फिर खूबभैरवी चक्र के पवित्र उत्सवाड़ायेवदाशोकहै बाजेचांडा लतो शहरोंमें जाकरविज्ञापन देते हैं कि नमुन ज्योनयी प्रमुक स्थान पर पाकर उतरे हैं धोरदो | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy