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________________ ( १७ ) वृत्त, वह सन्निपाती, वह कोदों देके पढ़ा, वह अविद्यायुक्त, बालक, बधिर, बिचारा संस्कृत विद्या पढ़ाही नहीं, ऐसे ऐसे शब्द और वाक्यों से परिपूर्ण पाया खेदकी बात है क्यों वृथा इतना कागज़ बिगाड़ा में तो आपही अपने को बड़ा बेसमझ बड़ा अविद्वान् बड़ा अधर्मी बड़ा अशास्त्रवित् बड़ा अव्युत्पन्न बड़ा अंधा पहलेसे मानेहुये हूं यदि इनकी जगह राम नाम लिखा होता कदाचित् कुछ पुण्यभी होसकता ( राम राम) मेरे शिरपर जाट खाट और कोल्हू चढ़ाया है (भ्रमोच्छदन पृष्ठ १०) (Thanks ) पर मैं तो पहाड़ का भी बोझ सहसकता हूं हां मुझको छली और कपटी जो लिखा है उसका कारण कुछ समझमें नहीं आया यदि कहेंकि जो जैसाहोताहै वैसाही दूसरोंकोभी समझता है तो ऐसी बात मनमें लाने के भी पापका भागी मैं नहीं हुआ चाहता जो हो मैं तो अपने प्रश्नका उत्तर देखनेको विह्वल था प्रश्न मेरा एकही इतना कि "आपने लिखा 'ब्राह्मण ग्रंथ सब ऋषि मनि प्रणीत और संहिता ईश्वर प्रणीत है' वादी कहताहै जो 'संहिता ईश्वर प्रणीत है' तो गदाण भी ईश्वर प्रणीत है और जो 'ब्राह्मण ग्रन्थ सब ऋपि मुनि प्रणीत' है तो संहिताभी ऋपि मुनि प्रणीत है आप ने लिखा वेद ( संहिता मात्र ) स्वतः प्रमाण और ब्राह्मण परतः प्रमाण हैं, वादी कहता है जो ऐसा तो वाह्मण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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