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________________ ( ९ ) प्रश्न की पूर्ति और सिद्धान्त की आशा हो आपने लिखा कि " मेरी बनायी हुई ऋग्वेदादि भाष्य भूमि - का के नवमें पृष्ठ से ( ६ लेके ) अट्ठासीके पृष्ठ तक वेदोत्पत्ति वेदोंका नित्यत्व और वेद संज्ञा विचौर विषयों को देख लीजिये" "निश्चय + होगा" सो महाराज "निश्चय" के पलटे में तो और भी भ्रान्ति में पड़गया मुझे तो इतनाही प्रमाण चाहिये कि आपने संहिता को " माननीय" मानकर ब्राह्मण का क्यों " परित्याग" किया और वादी तो संहिता जैसा ब्राह्मणको वेद मान जो आपने "वेद" के अनुकूल लिखा अपने अनुकूल और जो कुछ ब्राह्मण के प्रतिकूल लिखा उसे संहिता के भी प्रतिकूल समझता है तो भी मैंने आपकी "भाप्य भूमिका" मँगा के देखी पर उसमें क्या देखता हूं कि पहलेही ( पृष्ठ ह पंक्ति = ) लिखा है " तस्माद्यज्ञात् + + + अजायत” अर्थात् उस यज्ञसे (वेद) उत्पन्न हुए पृष्ठ १० पां २६ में आप शतपथ आदि ब्राह्मणका प्रमाण देकर यह सिद्ध करते हैं कि यज्ञ विष्णु और विष्णु परमेश्वर ( ४ ) और फिर पृष्ठ ११ पंक्ति १२ में आप यह लिखतेहैं कि " याज्ञवल्क्य महाविद्वान् जो महर्षि हुए हैं अपनी पंडिता मैत्रेयी स्त्री को उपदेश करते हैं ( 8 ) कैसा आश्चर्य है कि भापही तो संहिताको “स्वतः प्रमाण” और त्राह्मण को "परतः ममाण" लिखते हैं और फिर आपही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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