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________________ विज्ञास की सझे ] पर मत सो। [४] पुष्पमाला या इस का बवहार मत घर । (५) सोना वा चांदी स्वीकार न करना चाहिये। न दसों नियमों या माशाओं को वैरामिनी भी कहते । प्रत्येक बौद्ध मत में विश्वास रखने वाले को हम बातों का जानना परम श्रावश्यक है। पहली पांच प्राचा प्रत्येक बौद्धको माननी चाहिये । पिडली पांच केवल परिव्राजकों, सभ्यासियों, सम्तों या साधुओं के लिये हैं। हम पिबलों लिये और भी बहुत से नियम हैं। अपर के नियम वेद और वाहनों ही से लिये गये हैं। बुद्ध ने जो साधुओं के लिये नियम बनाये थे वे बहुत ही कड़े थे। सौर ने एक तरफ से जातिबन्धन ढीला कर दिया, दूसरी वरक ये नियम उस बम्धन से भी ज़ियादह कड़े बना दिये। परन्तु वे स्वयं इन नियमों का पूरा पूरा पालन करते थे। मिनु, अमर इत्यादि उपाधियां जो बौद्ध साधुगर अपने लिये लगाते थे वे स्वयं पर्युक्त बातो प्रतिध्वनित परती। बुद्ध भी इन उपाधियों को अपने लिये प्रयोग करने में बचन करते थे। वे अपने को कई जगह नहानिए और बमल गौतम कहते हैं । निःसन्देह, उपरोक्त नियमों का पालन करने वाला नहाल्मा हो सकता है। परन्तुचनाज का न हित होना बहा कठिन है। हमेचपने पर्म का प्रचार नसतारेकरनेकी शाखा दो। उनले सिद्वान्तों का प्रचार तसवार बोर सेनही शाबा ।वह कटा और तीब्र मालोचना भी न करते थे, जो पुख परतेचे से बहुत सरलता और नयता से करते थे। मुह ने माता पिता को मात्रा मानने और सनकी सेवा करने की भी कही मात्रा दोहै। प्राचीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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