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________________ ( ४० ) पवित्र ज्ञान जेा मानुषिक नियम से बहुत परे है ? ' बुद्ध ने उत्तर दिया “ मुझे प्रायुष्मन की पदवी मत दे।। बहुत दिनों से मैं तुम्हारे किसी काम का नहीं रहा और न तुम्हें सहायता दी है और न विश्राम । हाँ, अब मुझे साफ सूझने लगा है कि अमरता क्या है, और वह मार्ग भी जिस से अमरता मिलती है । मैं बुद्ध हूं; मैं सब जानता हूं, सब देखता हूं, मैं ने पाप को धो डाला है, मैं धर्म के नियमों का गुरु हूं, आाम्रो मैं तुम्हें सत्य का प्रकाश दिखाऊं, ध्यान पूर्वक मेरे कथन को सुना, मैं तुम्हें उपदेश द्वारा समझाऊंगा, और तुम्हारी आत्मा को पापों को क्षीण कर उद्धार - मार्ग पाने का उपाय और स्पष्ट आत्मज्ञान बतलाऊंगा । तुम वह सब करने में समर्थ होगे जेा ब्रावश्यक है, और फिर तुम श्रावागमन से पूर्वतया रहित हो जाओगे – बस यही तुम लोगों को मुझ से सोखना है ।" इसके बाद उन्होंने नम्र भावसे उन लोगों को वे सब बातें कहीं जो उन्होंने दुराग्रह वश उन का अपमान करने को उन के आने के पहले गांठी थीं । उनके पांचों शिष्य उनकी यह बात सुन लज्जित हो गये । अपने को उनके पैरों पर डाल उन्हों ने अपना अपराध स्वीकार किया और बुद्ध को संसार का दक्षिक मान उन के नये सिद्धान्त और धर्म को बादर स्वीकृत किया । इस पहली बात चीत में और रात के अन्तिम पहर लंक बुद्धने उन लोगों को अपने सिद्धान्त समझाये । यदि कुछ महत्व के थे तो येही लोग थे ओर पहले पहले उनके मतानुयायी हुए । सनातन धर्मवलम्बी हिन्दुओं को दृष्टि में काशी www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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