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________________ या न सिसा जो लोग सन्देह के सम्यकप में सड़ रहे। कदापि अधिक जान न पा सकेंगे ; चाहे मैं सिखाया न सिखाऊं जो श्राप जानी और बुद्धिमान् हैं सदा बुद्धिमान बने रहेंगे; परन्तु वे प्राणी जो अनिश्चय और अविश्वास में ग्रस्त हैं यदि मैं सिखा तो अवश्य जाम प्राप्त कर लाभ उठाएंगे और यदि न सिखागा, तो वे नहीं सीख सकेंगे। जो लोग अनिश्चय के गड्ढे में पड़े हुए थे, उनके अपर बुद्ध को बड़ी दया भाई, और उनके विचार करुणा से तो भरे थे ही उन्होंने कर्तव्य क्षेत्र में उतरने के लिये दृढ़ता से निश्चय कर लिया। जो लोग अनिश्चय और मविश्वास में थे सन के लिये के अमरता का द्वार खोलने को उद्यत हुए। उन्होंने अन्त में ४ श्रेष्ठ और सत्य सिद्धान्त ध्यानसागर से खोज निकाले । इन सबों को वे भले हुए लोगों को बचाने के लिये प्रकाश करने को उतारू हुए । अपने सिद्धान्त के प्राधार को एक बार पक्का और मिश्षय कर लेनेपर और अपने विचारोंको फैलाने के यन में आने वाली आपदाओं और कठिनाइयों का सामना करने का विचार दूढ़ कर लेनेपर, उन्हें यह विचार हुभा, कि मैं पहले पहले पिसे अपना धार्मिक सिद्धान्त जताऊं। यह कहा जाता है कि पहले उन का विचार अपने पुराने गुरुत्रों को राजगह और वैशाली में जाकर सिखाने और उपदेश देने का हुमा । कुछ दिनों पहले जब वे उन लोगों के पास गये थे सब ने उनका सबभागत स्वागत किया था; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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