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________________ ( २६ ) म था, इस से सम्होंने अपनी योग्यता की एक पक्की और अन्तिम परीक्षा लेनी चाही । हमने पहले एक ब्राह्मण भाचार्य का वर्णन किया है सस से भी बढ़ कर राजगृह में एक विद्वान् था। राम नामक एक विद्वान् था उसका ही पुत्र या प्राचार्य उदरक नाम का था और सचमुच यह एक असाधारण विद्वान् था। उसकी बराबरी पास पास के बहुत कम पण्डित कर सकते थे, और बढ़ कर तो कदाचित उन में कोई नहीं था। सिद्धार्थ सन के पास गये और अपना शिष्य बना लेने की उन से प्रार्थना की । कुछ शास्त्रार्थ के बाद उदरक ने सिद्धार्थ को अपनी बराबरी का पद देकर उन्हें अपने आश्रम में एक अध्यापक नियत किया, और कहा हम दोनों मिल कर अपने मिद्धान्त लोगों को सिखावेंगे । उक्त अध्यापक के 900 शिष्य थे। जिस तरह वैशाली में हुआ था, उसी तरह यहां भी राजकुमार की विद्या की श्रेष्ठता झलकने लगी, और सिद्धार्थ को लाचार होकर उन लोगों से यह कह कर जुदा होना पड़ा " मित्र, यह मार्ग मनुष्यों का उद्धार नहीं कर सकता, इससे कामेन्द्रिया नहीं जीती जा सकती और न इस से मनुष्य आवागमन के दुःखें। से बच सकता है, न यह पूर्ण ज्ञान और शान्ति की ओर जाता है, और न इस से अमण अवस्था प्राप्त हो सकती है और न निर्वाण ।" इसके बाद वे उदरक, और उनके समस्त शिष्यों के समीप से चले गये। उदरक के पांच शिष्य श्रमण गौतम को भोहिनी बक्तता, चरित्र और मुगों की पवित्रता से लुभाकर उन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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