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एक बार गोचरीमें खीचडी अत्यंत खारी आई थी। वे खोचडी सूरिजीके खानेमें आई। आप मौन होकर आहार कर गये। पीछेसे श्रावक दौडते-दौडते आये और कहने लगा, महाराज मेरी बहुत गल्ती हुई माफकरें। साधुनें पूछा, क्या हुआ? उसने उक्त प्रसंग को सुणाया। शिष्यों, सूरिजोके मौनसे दिगमूढ हो गये, और बोलने लगा, आपने रसनेन्द्रिय पर कितना काबू लिया है। आप रोजाना बारह द्रव्य (चीज) आहार में लेते थे।
___ एक बार आपके कम्मर में फोडा हुआ था। वो बहुत पीडा कर रहा था। रातको एक श्रावकनें भक्ति करते हुये अपनी अंगूठी से वो फोडा फुट गया। खुन बहने लगा। इस समय आपको इतनी पीडा हुई कि, आपने एक भी शब्द अपने मुँह से नहीं निकालकर उस पीडाको सहन किया। सुबह सोम विजयजीने पडिलेहण समय उत्तरपटो (चादर) रक्तवर्णो दिखें। सूरिजीनें रातकी बात सुनाई। श्रावकका अविनयसे शिष्य को खेद हुआ। मगर सूरिजीने ऐसा उत्तर दिया कि, साधु मंडली गुरुवरके सहनशीलता पर मुग्ध हो गई।
गुरुदेव के प्रति आपकी भक्ति भी इतनी थी कि, एक समय गुरुदेव विजयदानसूरिजीनें आपको पत्र भेजा। शीघ्र पत्र पढकर आ जावें।
__ आपने पत्र पढे, उस दिन आपको छ? (दो उपवास) था। श्रावकोंने पारणा के लिये बहुत आग्रह किया। मगर अपन तुरत ही बिना पारणा किये विहार करके गुरुवर के पास पहुंच गये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com