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देके हमारे पर उपकार कर रहे हो। उनका बदला तो नहीं हो सकता, मगर मेरे पर कल्याणार्थे आप मुझे कुछ कार्य की आज्ञा बताये ! भापकी कौनसी सेवा करुं जिससे आप खुश हो।
बादशाह की इतनी भक्ति-इतनी उत्सुक प्रार्थना देखकर सूरिजौको अपना स्वार्थ के लिये, अपना गच्छ के अपना अनुयायी भक्तों के लिये कुछ बात न की। क्योंकि वे समझते थे, कि संसार में सर्वोत्कृष्ट कार्य जीवोंको अभय दान देना है। अतः जब जब बादशाह ने कार्य पूछे-सेवा का लाभ पूछे, तभी उन्होंने जीवोंको सुख-शान्ति-आबादी. अभय दान देनेका बचन माँगा।
इस समय बादशाहने सेवा-कार्य पूछे, तब सूरिजीने कहा, आपको यहाँ हजारों पक्षी दरबार में बंद है, उसको मुक्त कर दो। और डाबर नामका जो बडा तालाब है, उसमें से कोई मछलियाँ न पकडे ऐसा हुकम कर दो।
उस समय वार्तालापमें सूरिजीने पर्युषणका आठ दिन सारे राष्ट्र में अमारी की उद्घोषणा की जाय ऐसा उपदेश भी दिया।
बादशाहने अपने कल्याणार्थ चार दिन इसमें ज्यादा कर बारह दिनका फर्मान निकालनेकी स्वीकृति कर दो। फर्मान पर शाही महोर और अपना हस्ताक्षर करके सारे सुबोंको भेज दिया। एक फर्मान थानसिंह को दिया। उसने भस्तक पर चढाया और बादशाह को फूलों और मोतीयां से बधाया।
एक फर्मान गुजरात-सौराष्ट्र, दूसरा दिल्ही, तीसरा नागोर, चौथा मालवा-दक्षिण, पाँचवा लाहोर-अजमेर, और छट्ठा सूरिजी को दिया।
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