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वाहन का उपयोग नहीं करना । एक पैसा का भी परिग्रह नहीं रखना । पैदल चलना, माधुकरीसे जीवन निर्वाह करना इत्यादि सुणायें । आपने क्षमा याची, वो आपकी सज्जनता है । इस वार्तालाप में बहुत समय हो गया और ज्यादा धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने कमरे में ले जाते है । तब सूरिजी कमाडके पास रुक गये ।
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आप क्यों रुक गये ?
बादशाहने पूछा, सूरिजीने कहा, इस गालीचा पर पाँव रखकर हम नहीं आ सकते । क्योंकी हमेरा आचार है कि चलना हो बैठना हो तो अपनी नजर से देखकर चलना बैठना । जिससे किसी जीवको दुःख न हो और वे मर न जावे । धर्मशास्त्र भी फरमाते है, 'दृष्टि पुतं न्यसेत् पादम् '
करते है तो
बादशाहनें कहा, हमारे सेवक रोजाना साफ क्या इसमें चिटियां घुस गई व बोलकर अपने हाथ से एक ओरसे गालीचा का छेडा उठाया । तब बादशाह आश्चर्य के सागर में बुड गये । और लाखों चिटियाँ देखकर सूरिजी के प्रति श्रद्धा सौ गुणी और बढ गई । अकबरने अपने रेशमी वस्त्र के अंचल से चिटियाँ दूर करके प्रवेश कराया । और अपनी भुलकी क्षमा मांगी।
सूरिजीनें सच्चे देव, गुरु और धर्मका संक्षेपमें उपदेश दिया । उपदेश सुनकर सूरिजीके पांडित्य और चरित्रका बादशाह के हृदयमें बडा आदरभाव हुआ । इतना ही नहीं अपने पास पध्मसुंदर नामक साधुका ग्रंथालय था उन पुस्तकों को ग्रहण करने की प्रार्थना की।
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