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सब ने सोचा, बादशाह का पत्र है। इसलिये हीसूरिजी को वाकेफ करना ही चाहिये। और खंभात जैन संघ को पत्र से ईतला देकर गंधार बुलाना। और अपना संघ, खंभात संघ, गंधार के श्रावकें सब मिलकर विचार विनिमय करेंगे।
दो पत्र को लेकर अहमदाबाद संघ, खंभात संघने सूरिवर की निश्रा में आकर दोनों पत्र गुरुकरांबुज में दे दिया। इस तरह तीनों संघो की मिटींग हुई। गुरुवरको जाने देगा कि नहिं इस पर गंभीर विचार विनिमय हुआ। अंत में सब एक राय पर आये कि, सूरिवर जैसा फरमावें ऐसा करना।
तीनों संघ के अग्रणी सूरियर के पास आये, पूज्यश्रीने रुपेरी घंटडी जैसा मधुर स्वर से सबको पूर्व महर्षिओंने राजाओं के पास जाकर कैसी शासन प्रभावना कि उनका परिचय दिया । यह सुनकर सब को रोमराजी विक्स्वर हो गई। और एक ही आवाज बोलने लगे, पूज्यश्री को जरूर बादशाह को पास जाना ही चाहिये।
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" लब्धिवाणी" लक्कड जैसे अक्कड, मानव को जन्म मरण की
पक्कड मजबूत बन जाती है ।
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