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हम चोरडिया-खर-वर नहीं हैं
लेखक-केसरीचन्द चौरहिया)
नागोर में खरतरगच्छीय श्रीमान् हरिसागरजी कदाग्रह पूर्वक आग्रह करते हैं कि “चोरड़िया" दादाजी जिनदत्त सूरिजी ने बनाये हैं। और जैन पत्र ता० १-८--३७ के अंक में यह बात नागोर के समाचार में छपाई भी है, पर सागरजी को अभी तक इस साधारण बात का भी ज्ञान नहीं है कि-दादाजी कब हुए, और चोरड़िया गोत्र कब बना ? आपने तो केवल हमारे कई अज्ञात पारख, गोलेच्छा भाईयों को खरतरों की क्रिया करते देख या यतियों के गप्प पुराण पढ़के यह प्रवचनोच्चारण कर दिया कि चोरडिया खरतर हैं । यदि सागरजी पहिले इस विषय का थोड़ा सा अभ्यास कर लेते तो दादाजी के जन्म के १५०० वर्ष पूर्व बने हुए चोरड़ियों को खर-तर कहने की भूल नहीं करते ? सागरजी चोरड़िया जाति की मूल उत्पत्ति से बिलकुल अज्ञात ही मालम होते हैं, क्योंकि हमारी चोरडिया जाति स्वतंत्र गोत्र नहीं है। अर्थात् यह नाम अजैनों से जैन बनाये उस समय का नहीं है । पर यह किसी प्राचीन गोत्र की शाखा है। प्रमाण के लिए खास खरतरगच्छीय यति रामलालजी ने अपनी “महाजन वंश मुक्तावली" नामक पुस्तक के पृष्ठ १० पर आचार्य रत्नप्रभसूरि स्थापित १८ गोत्रों में ११ वाँ गोत्र "अइचगाग” अर्थात् आदित्यनाग गोत्र लिखा है। उसी आदित्य नाग गोत्र की एक श:खा चोरडिया है । · इस विषय में हम नमूने के तौर पर अधिक दूर के नहीं, पर पन्द्रहवी सोलहवीं शताब्दी के एक दो ऐसे सर्वमान्य शिलालेखों के उदाहरण यहाँ उद्धत कर देते हैं कि जिससे सागरजी अपनी भूल को स्वीकार कर चोरडिया जाति को खर-तर नहीं पर उपकेशगच्छोपासक होना ग्रेषित कर देंगे। लीजियेः - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com