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________________ ૫૫ मेरी सीख सीखो तो सिखामन या सीखी लैना, निर्धन न लेना कबु धनी की सुकन्यका ॥१२॥ (३) अंध्रीनको चलनो अटक्यौ घटकों दुख संघट आइकें घेर्यो । दृष्टिन दैवत दूरि गयौ अब आदित्य टारि शकै न अंधेरो॥ दांतकी पांत परी भुजको बल भाग गयौ श्रुतिके बल मेरो॥ रे विधि वृद्धपनो पसर्यो बहु जोबन जोर गयो कित मेरो ॥१७॥ (४) ग्रीषम भीषम ताप तपै वसुधा भई वीषम बारि बिनाकी वानरको सिर फाटी परै तो कह्या नरकी रही बात कह्याकी वात सहात निवास विषै न प्रवास विषै कहुं क्या प्रसर्याकी राह नहीं पुनि दाह लगै श्नोन कियो अवगाह एकाकी घेरी रही घनघोर घटा चपलाकी छटा चमकै बहु पासै मोर करे तरु के पर तांडव खांडीव सी बनकी भुवि भासै कुंज समान कहै दलपत्ति बड़े अरविंदन वृंद विकास आतुरतासें रहे विरहातुर चातुरका चित्त चातुर मासे (५) कावरीकी तुलातुल्य खगोल भूगोल नांहि परम पुनीत मोछ पदवीकी पायरी त्रिबेनी को तत्व ताकी त्रिरज्जु के तुलनाहिं __ कौन गिनतीमें गंगा गोमती गोदावरी कावरीको दंड यमदंडकों विखंडकारी कावरी नहि है भवनिधिको है नावरी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034838
Book TitleGujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Pitambardas Derasari
PublisherGujarat Varnacular Society Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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