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________________ [ ८४ ] से पूजन, वर का ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने लिये कन्या- वरण की प्रार्थना करना, वधू के गले में वर की दी हुई ताली बाँधना, सुवर्णदान और देवोत्थापन आदि की बहुत सी बातें हिन्दू धर्म से लेकर अथवा इधर उधर से उठाकर रक्खी हैं और उनमें से कितनी ही बातें प्रायः हिन्दू ग्रंथों के शब्दों में उल्लेखित हुई हैं, जिसका एक उदाहरण ' देवोत्थापन - विधि' का निम्न पद्य है - समे च दिवसे कुर्याद्देवतोत्थापनं बुधः । षष्ठे च विषमे नेष्टं त्यत्क्का पंचमसप्तमौ ॥ १८०॥ यह 'नारद' ऋषि का वचन है। मुहूर्त चिन्तामारी की 'पीयूषधारा' टीका में भी इसे 'नारद' का वचन लिखा है । इसी प्रकरण में भट्टारकजी ने 'विवाहात्प्रथमे पौषे ' नाम का एक पद्य और भी दिया है जो 'ज्योतिर्निबन्ध' ग्रंथ का पद्य है । परंतु उसका इस 'देवोत्थापन ' प्रकरण से कोई सम्बंध नहीं, उसे इससे पहले ' वधू- गृह प्रवेश' प्रकरण मैं देना चाहिये था, जहाँ ' वधूप्रवेशनं कार्यं ' नाम का एक दूसरा पद्य भी ' ज्योतिर्निबन्ध ' ग्रंथ से बिना नाम धाम के उद्घृत किया गया है। मालूम होता है भट्टारकजी को नकल करते हुए इसका कुछ भी ध्यान नहीं रहा ! और न सोनीजी को ही अनुवाद के समय इस गड़बड़ी की कुछ खबर पड़ी है !! ५ - आदिपुराण में लिखा है कि पाणिग्रहण दीक्षा के अवसर पर वर और वधू दोनों को सात दिन का ब्रह्मचर्य लेना चाहिये और पहले तीर्थभूमियों आदि में विहार करके तब अपने घर पर जाना चाहिये । घर पर पहुँच कर कङ्कण खोलना चाहिये और तत्पश्चात् अपने घर पर ही शयन करना चाहिये - श्वशुर के घर पर नहीं । यथा: पाणिग्रहणदीक्षायां नियुक्तं तद्वधूवरम् । सप्ताहं धरेद्ब्रह्मवतं देवाग्निसाक्षिकम् ।। १३२ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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