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________________ [३५] हलकृष्ट जल चित्यां वल्मीके गिरिमस्तके । देवालये नदीतीरे दर्भपुष्पेषु शाहले ॥ २२ ॥ यह 'बौधायन ' नाम के एक प्राचीन हिन्दू लेखक का वचन है । स्मृतिरत्नाकर में भी यह · बौधायन ' के नाम से ही उद्धृत मिलता है । इसमें फालकृष्टे' की जगह यहाँ · हलकृष्टे' और 'दर्भपृष्ठे तु' की जगह 'दर्भपुष्पेषु' बनाया गया है, और ये दोनों ही परिवर्तन कोई खास महत्व नहीं रखते-बल्कि निरर्थक जान पड़ते हैं। प्रभाते मैथुने चैव प्रस्रावे दन्तधावने । स्माने च भोजने वान्त्यां सप्तमौनं विधीयते ॥२-३१॥ यह पद्य, जिसमें सात अवसरों पर मौन धारण करने की व्यवस्था की गई है—यह विधान किया गया है कि १ प्रातःकाल, २ गैथुन, ३ मूत्र, ४ दन्तधावन, ५ स्नान, ६ भोजन, और ७ वमन के अवसर पर मौन धारण करना चाहिये-'हारीत' ऋषि के उस वचन पर से कुछ परिवर्तन करके बनाया गया है, जिसका पूर्वार्ध 'प्रभात' की जगह 'उच्चारे' पाठभेद के साथ बिलकुल वही है जो इस पद्य का है और उत्तरार्ध है 'श्राद्धे (स्नान ) भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत्।' और जो 'आन्हिक सूत्रावलि' में भी हारीत' के नाम से उद्धृत पाया जाता है । इस पद्य में 'उच्चारे' की जगह 'प्रभाते' * इस श्लोक के बाद 'मलमूत्रसमीपे' नाम का एक पद्य और भी पंचमृत्तिका के निषेध का है और उसका अन्तिम चरण भी 'न ग्राह्याः पंचमृत्तिकाःहै। वह किसी दूसरे विद्वान की रचना जान पड़ता है। ___+'श्राद्ध' की जगह 'लाने ऐसा पाठ भेद भी पाया जाता है। देखो ‘शन्न कल्पदुम'। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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