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________________ [ १७२] तो और क्या है ! भरत चक्रवर्ती जैसे धार्मिक नेता पुरुषों ने तो ऐसे लोगों से भेट में चमरी और कस्तूरी ( मुश्क नाफे ) जैसी चीजें ही नहीं कितु कन्याएँ तक भी ली थीं, जिनका उल्लेख आदिपुराण आदि ग्रंथों में पाया जाता है । राजा लोग ऐसे व्यक्तियों से कर और जमींदार लोग अपनी जमीन का महसूल तथा मकान का किराया भी लेते हैं । उनके खेतों की पैदावार भी ली जाती है । अतः भट्टारकजी का उक्त उद्गार किसी तरह भी युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता। अब रही उन लोगों को कभी न छूने की बात, यह उद्गार भी युक्ति-संगत मालूम नहीं होता | जब हम लोग उन लोगों के उपकार तथा उधार में प्रवृत्त होंगे, जो जैनमत का खास उद्देश्य है, तब उन्हें कभी अथवा सर्वथा छुएँ नहीं यह बात तो बन ही नहीं सकती। फिर भट्टारकजी अपने इस उद्गार के द्वारा हमें क्या सिखलाना चाहते हैं वह कुछ समझ में नहीं आता ! क्या एक शराबी को शराब के नशे में कूपादिक में गिरता हुआ देख कर हमें चुप बैठे रहना चाहिये और छु जाने के भय से उसका हाथपकड़ कर निवारण न करना चाहिये ? अथवा एक चमार को डूबता हुआ देखकर छू जाने के डर से उसका उद्धार न करना चाहिये ? क्या एक गोघाती मुसलमान, मच्छीमार, ईसाई या शराब बेचनेवाले हिन्द् के घर में आग लग जाने पर, स्पर्शभय से, हमें उसको तथा उसके बालबच्चों को पकड़ पकड़ कर बाहर न निकालना चाहिये ? और क्या हमारा कोई पातिकी भाई यदि अचानक चोट खाकर लहूलुहान हुआ बेहोश पड़ा हो तो हमें उसको उठा कर और उसके घावों को धो पूँछ कर उसकी मर्हम पट्टी न करना चाहिये, इसलिये कि वह पातिकी है और हमें उसको छूना नहीं चाहिये ? अथवा एक वैद्य या डाक्टर को अपने कर्तव्य से च्युत होकर ऐसे लोगों की चिकित्सा ही नहीं करनी चाहिये ? यदि ऐसी ही शिक्षा है तब तो कहना होगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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