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________________ [१३५] परन्तु क्यों नहीं करना चाहिये ? करने से क्या खराबी पैदा हो जाती है अथवा कौनसा उपद्रव खड़ा हो जाता है ? ऐसा कुछ भी नहीं लिखा । क्या तिलक छाप लगाए बिना इनको करने से ये कार्य अधूरे रह जाते हैं ? इनका उद्देश्य सिद्ध नहीं होता ? अथवा इनका करना ही निष्फल होता है ? कुछ समझ में नहीं आता !! हाँ, इतना स्पष्ट है कि भट्टारकजी ने जप-तप, दान, स्वाध्याय, पूजा-भक्ति और शास्त्रो. पदेश तक को तिलक के साथ बँधे हुए समझा है, तिलक के अनुचर माना है और उनकी दृष्टि में इनकी स्वतंत्र सत्ता नहीं-इनका स्वतंत्रता पूर्वक अनुष्ठान नहीं हो सकता अश्या वैसा करना हितकर नहीं हो सकता । और यह सब जैन शासन के विरुद्ध है । एक वस्त्र में तथा एक जनेऊ पहन कर इन कार्यों के किये जाने का विरोध जैसे युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता उसी तरह पर तिलक के बिना भी इन कार्यों का किया जाना, जैन सिद्धांतों की दृष्टि से कोई खास आपत्ति के योग्य नहीं जंचता । इस विषय में ऊपर ( नं० १६ तथा १८ में ) जो तर्कणा की गई है उसे यथायोग्य यहाँ भी समझ लेना चाहिये । इसी तरह पर तीसरे अध्याय में दर्भ * का माहात्म्य गाया गया है और उसके बिना भी पूजन, होग तथा जप श्रादिक के करने का निषेध किया है और लिखा है कि पूजन, जप तथा होम के अवसर पर दर्भ में ब्रह्मगाँठ लगानी होती है । साथ ही, यह भी बतलाया है कि नित्य कर्म करते हुए हमेशा दो दमों को दक्षिण हाय में धारण करना चाहिये . .. . ---... - ... - --- - - - - - - - ........ * कुश, कॉस, दूब और मूंज वगैरह घास, जिसमें गहूँ, जौ तथा धान्य की नालियाँ भी शामिल है और जिसक इन भदों का प्रति. पादक श्लोक "भजैन प्रन्यों से संग्रह " नामक प्रकरण में उदधृत किया जा चुका है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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