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________________ [१२१] हिन्दुओं से एक कदम और भी आगे बढ़े हुए मालूम होते हैं-उन्होंने त्रैवर्णिक सेवकों के धोए हुये वस्त्रों को ही तिरस्कृत नहीं किया, बल्कि पहले दिनके खुद के धोए हुये वस्त्रों को भी तिरस्कृत किया है। आप लिखते हैं 'अधौत (बिना धोया हुआ), कारु-धौत (शिल्पि शूद्रों का धोया हुआ) ओर पूर्वेद्युधौत (पहले दिन का धोया हुआ) ये तीनों प्रकार के वस्त्र सर्व कार्यों के अयोग्य हैं-किसी भी काम को करते हुये इनका व्यवहार नहीं करना चाहिये । यथा अधौतं कारुधौतं वा पूर्वेद्युतमेव च।। त्रयमेतदसम्बंधं सर्वकर्मसु वर्जयेत् ।। ३१ ।। पाठकगण ! देखा, इस वहम का भी कहीं कुछ ठिकाना है !! मालूम नहीं पहले दिन धोकर अहतियात से रखे हुए कपड़े भी अगले दिन कैसे बिगड़ जाते हैं ! क्या हवा लगकर खराब हो जाते हैं या धरे धरे वुस जाते हैं ? और जब वह पहले दिन का धोया हुआ वस्त्र अगले दिन काम नहीं आ सकता तो फिर प्रातः संध्या भी कैसे हो सकेगी, जिसे भट्टारकजी ने इसी अध्याय में सूर्योदय से पहले समाप्त कर देना लिखा है ? क्या प्रातःकाल उठकर धोये हुए वस्त्र उसी वक्त सूख सकेंगे, .या गीले वस्त्रों में ही संध्या करनी होगी ? खेद है भट्टारकजी ने इन सब बातों को कुछ भी नहीं सोचा और न यही खयाल किया कि ऐसे नियम से समय का कितना दुरुपयोग होगा ! सच है वहम की गति बड़ी ही विचित्र है-उसमें मनुष्य का विवेक बेकार सा होजाता है। उसी वहम का यह भी एक परिणाम है जो भट्टारकजी ने अधौत के लक्षण में शूधौत आदि को शामिल करते हुये भी यहाँ 'कारुचौत' का एक तीसरा भेद अलग वर्णन किया है। अन्यथा, शूद्रधौत और चेटकधौत से भिन्न कारुधौत' कुछ भी नहीं रहता। अधौत के लक्षण की मौजूदगी में उसका प्रयोग बिलकुल व्यर्थ और खालिस वहम जाम पड़ता है । इस प्रकार के वहमों से यह ग्रंथ बहुत कुछ भरा पड़ा है। ' . ' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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