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________________ [११५] नरकालय में वास । (९) शायद पाठक यह सोचते हों कि कन्या यदि विवाह से पहले रजस्वला हो जाती है तो उसमें कन्या का कोई अपराध नहीं-वह अपराध तो उस समय से पहले उसका विवाह न करने वालों का है जिन्हें कोई सजा नहीं दी गई और बेचारी कन्या को नाहक शूद्रा ( वृषली) करार दे दिया गया ! परंतु इस चिंता की जरूरत नहीं, भट्टारकजी ने पहले ही उनके लिये कड़े दण्ड की व्यवस्था की है और पीछे कन्या को शूद्रा ठहराया है । आप उक्त पद्य से पूर्ववर्ती पद्य में ही लिखते हैं कि यदि कोई अविवाहिता कन्या रजस्वला हो जाय तो समझ लीजिये कि उसके माता पिता और भाई सब नरकालय में पड़े अर्थात् , उसके रजस्वला होते । उन सब के नरकवास की रजिस्ट्री हो जाती है-शायद नरकायु बँध जाती है और उन्हें नरक में जाना पड़ता है * । यथा: असंस्कृता तु या कन्या रजसा चेत्परिप्लुता। भ्रातरः पितरस्तस्याः पतिता नरकालये ॥ १५ ॥ पाठकगण ! देखा, कितना विलक्षण, भयंकर और कठोर ऑर्डर है! क्या कोई शास्त्री पंडित जैन सिद्धान्तों से-जैनियों की कर्म फिलॉसॉफी से--इस ऑर्डर अथवा विधान की संगति ठीक बिठला सकता है ? अथवा यह सिद्ध कर सकता है कि ऐसी कन्याओं के माता पिता और भाई अवश्य नरक जाते हैं ! कदापि नहीं । इसके विरुद्ध में असंख्य प्रमाण जैनशास्त्रों से ही उपस्थित किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिये, यदि भट्टारकजी की इस व्यवस्था को ठीक माना जाय तो कहना होगा कि ब्राह्मी और सुन्दरी कन्याओं के पिता भगवान ऋषभदेव, माताएँ यशस्वती ( नंदा ) तथा सुनंदा और भाई बाहुबलि तथा भरत चक्र * यदि उनमें से पहिले कोई स्वर्ग चल गये हों तो क्या उन्हें भी जिंच कर पीछ से नरक में माना होगा ! कुछ समझ में नहीं माना ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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