________________
(९४ ) पुत्रीरूप उत्पन्न हुई । वहां निकाचित कर्म भोगते हुए स्वल्प कर्म शेष रहे, तब ज्ञानीकी देशना सुननेसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । पूर्वके भव देखे । तब दुर्गधाने हाथ जोडकर पूछा कि-महाराज ! इस दुःखसे मुक्ति होवे ऐसा उपाय बतलाइये । गुरुने कहा कि-इस दुःखकों मिटानेवाला रोहिणी तप करो । उस तपका विधि मैं बतलाता हु सो ध्यान देकर सुनो। सात वर्ष और सात मास पर्यंत रोहिणी नक्षत्रके दिन उपवास करना। श्रीवासुपूज्यकी पूजा करना । तप तपते हुए शुभ ध्यान करना । उसके प्रभावसे अच्छा होगा। आगामी भवमें राजाकी रानी होगी। वह सुख भोग कर श्रीवासुपूज्यके तीर्थ में मोक्षमें जायगी । तप पूर्ण होने पर उजमणा करना । श्री जिनप्रासाद कराना, श्रीवासुपूज्यजीकी रत्नमयी प्रतिमा कराना । उनको सुवर्ण व मोतीके आभरण कराके चढाना । तथा स्नान, विलेपन, कुंकुम, कपूर आदि सुगंधी द्रव्यसे पूजा करना । श्रीसंघकी भक्ति करना । अमारी प्रवर्तावना । दीनजनोंको दुःखसे मुक्त करना । स्वामी वात्सल्य, संघपूजा करना, सिद्धांत लिखाना । इस तप के करनेसे सुगंध राजाके भांति सर्व दुःख नष्ट हो जायंगे । तब दुर्गंधाने पूछा कि-सुगंध राजा कौन हुआ है । उसका वृत्तांत कहिये।
गुरुने कहाः-सिंहपुर नगर में सिंहसेन राजा राज्य करता था । उसकी रानीका नाम कनकप्रभा है, उसे एक पुत्र हुआ जो अत्यंतही दुर्गंधयुक्त था, जिससे वह सबको अप्रिय हुआ। एकदफे उस नगरीमें पद्मप्रभा स्वामी ममोगरे । वहां कुटुंब परिवार सह जा कर राजाने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com