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(८४) वनमें जा कर मृगली और उनके बालकका वियोग कराता था। हंस, तोते, मयूर आदि पक्षियोंको उनके बालकसे अलग करता व पकड कर पिंजरे में डाल कर बेचता था। वैसेही मनुष्यके बालकों को भी एक गांवमेंसे ले कर दूसरे गांवमें जा कर बेचताथा। इस प्रकार धनके लोभसे पाप करता था, उसको ऐसा करनेसे रोकने के लिये बहुत सजनोंने प्रयत्न किया, तथापि वह दुष्ट कर्मसे पीछा न हटा-दुर्व्यसन नहीं छोडा। जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कदापि स्वभावको नहीं छोडता है।
एक दिन उसने किसी क्षत्रियके बालकको बेचने के लिये चुपकेसे उठाया। मगर उसके मात पिताने देख लिया और शीघ्र उसे पकड कर बहुतही पीटा और छेदन भेदन किया। उसकी वेदनासे रौद्रध्यान पूर्वक मृत्यु पा कर पहली नरकमें गया । बडा भाइ विल्हण अपने भाइकी मृत्यु सुन कर वैराग्य पा कर व अनशनव्रत ले कर समाधि मरणके अनन्तर सौधर्म देवलोकमें देवता हुआ । वहांसे चव कर तेरा देशल नामक बडा. पुत्र हुआ है । उसने पूर्वभवमें भूखे प्यासे पर दया की थी जिस पुण्यके योगसे उसको अनेक गुणवंत पुत्रोंकी प्राप्ति हुई है। और तिल्हणका जीव नरकसे निकल कर तेरा देदा नामक छोटा पुत्र हुआ है। उसने पूर्व भवमें मनुष्य और तिर्यचके बालकोंका अपने मातापितासे वियोग कराया था जिससे उसको संतति नहीं होती है। ऐसे गुरुके बचन मुन कर दोनों भाइओको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । जिससे पूर्वके भव देखने में आये । तब वैराग्य पा कर समकित मूल बारह व्रत अंगीकार किये । और चारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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