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(८२) देव प्रत्यक्ष हुआ और कहने लगा कि-हे सेठ ! तू कष्ट किस वास्ते सहन कर रहा हैं ? क्योंकि देव, दानव, व्यंतर, यक्ष, चाहे सो हो, परन्तु कोइ भी उपार्जन किये हुए कर्मको दूर नहीं कर सकते हैं। हे सेठ! तूने पूर्व जन्मान्तरमें अंतराय कर्म बांधे हुए हैं, उसमें मेरा कुछ बल नहीं चल सकता । इस प्रकार यक्षने कहा तो भी सेठ वहांसे उठा नहीं । तब यक्षने कहा कि-कदाचित् मैं तुझे पुत्र दूंगा तो भी वह पुत्र जीवित न रहेगा। तब फिर भी तू मुझे ओलंभा ( उपालंभ ) देगा। सेठने कहा कि एक दफे पुत्र होवे ऐसा कीजिये । फिर चाहे सो हो । यक्ष भी उस बातकी हा कह कर अपने स्थानक चला गया।
सेठने घरमें आ कर अपनी स्त्रीके पास बात कही। स्त्री और सेठने कुछ हर्ष और कुछ विषाद पाते हुए पारणा किया । अन्यदा गर्भाधान हुआ। पुत्रप्राप्ति भी हुइ, जिसकी बधाइ सुन कर सेठ हर्षित हुए । वह पुत्र दीर्घजीवी होवे, इस लिये उसे तुलामें तोल कर उसका नाम भी तोला रखा । छट्ठी, दशोट्टण प्रमुख करते हुए स्वजनोंको जिमा कर दान मान दिये । फिर यक्षको भेटने के लिये बली, फूल प्रमुख ले कर व बालकको भी साथ ले कर यक्षके भुवनमें गये। वहां द्वार बंध किये हुए थे । उसे खोलने के लिये अनेक उपाय किये, मगर यक्षने दर्शन न दिये । तब सर्व वापिस घरको लोट आये। सेट बोले कि यक्षने कहा था कि लडका जीवित न रहेगा सो शायद वैसाही हो जाय! उस प्रकार सोच करते हुए वह दिवस तो गया, मगर रा
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