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दूधकी धारा बहने लगी, अपने पाम महीकी मटकी थी उसका दान दिया । साधुने भगवानको पूछा कि-हमें माताके हाथसे पारणा न हुआ। भगवानने कहा किजिसके हाथसे पारणा हुआ वह शालिभद्रकी पूर्वभवकी माता थी। फिर दोनों साधुओंने अनशन किया। भद्राको जब मालूम हुआ तब बहुत पश्चात्ताय करती हुइ बत्तीस गुत्रवधुओंको साथ ले कर श्रेणिक गजाके साथ मिलकर अनशनस्थानकको आइ और साधुओंको वंदना कर अपने घरको चली आइ । वे ऋषि सार्थसिद्ध विमानमें पहुंचे, एकावतारी हो कर मोक्षमें जायेंगे । अतः जो भावपूर्वक सुपात्रको दान देता है वह दिन दिन प्रति नये नये भोगविलास प्राप्त करता है।
अब पच्चीसवीं और छब्बीसी गाथाका उत्तर देढ गाथाके द्वारा कहते हैं।
पसुपक्खिमाणुसाणं बाले जोवि हु जो विच्छोहइ पावो । सोअणवच्चो जायइ अह जायइ तोवि णो जीवइ ॥ ४॥ जो होइ दयापरमो बहुपुत्तो गोयमा भवे पुरिसो।
अर्थात्-जो पापी पुरुष गवादि पशुओंके बालक तथा हंस प्रमुख पक्षिओंके बालक तथा मनुष्योंके बालकोंका अपने मातपितासे वियोग करताहै वह पुरुष अनपत्य यानि संतानसे रहित होता है। अथवा कदापि संतति होती है तो बचती नहीं। जिस प्रकार सिद्विवास नगरमें वर्द्धमान
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