________________
(७८) कहा कि-वह करियाणा नहीं है, यह तो अपना राजा है । यह बचन सुन कर शालिभद्र विचार करने लगा कि मैं सेवक हुं वह ल्वामी है । अत एव मैंने पूर्णरूपसे पुण्य नहीं किय । ऐसा सोचता हुआ नीचे आया और राजाको प्रणाम किया । राजाने गोद में बैठा कर मुखचुम्बन किया । शालिभद्र राजाके पास गमगीन हो गया। जिससे गोद में उठ कर सातवें मजले पर चला गया। भद्राने राजाको भोजन करने के लिये प्रार्थना की। श्रेणिक स्नान करनेको बैठा । स्नान करते हुए राजाकी मुद्रिका कुएमें गिर गई। भद्रान कृपका पानी बाहर निकलबाया । जिसमेंसे अनेक प्रकार के अपार तेजस्वी आभूषण निकलते हुए देखे । उन आभूषणों के मुकाबले राजाको अपनी मुद्रिका निस्तेज प्रतीत होने लगी । यह देख कर आश्चर्यचकित हो कर राजाने दामीको पूछा कि-ये अमूल्य आभरण कूपमें कहांसे आये ? तब दासीने कहा कि हमारे स्वामी तथा उनकी बत्तीस स्त्रियां नित्यप्रति नये नये आभूषण पहनते हैं। अगले दिनके पहने हुए आभूषण उतार कर कूपमें डाल देते हैं। अतः हमारे स्वामीका यह निर्माल्य है। श्रेणिक अत्यंत आश्चर्य पा कर दान पुण्यके यह फल है यह सोचता हुआ भोजन कर अपने महलमें गया। पीछे शालिभद्रने वैराग्य पा कर ऐसा निर्धार किया कि-बत्तीस स्त्रियोंमेंसे नित्यप्रति एक एक स्त्रीका परित्याग करना।
अब इसी गांवमें एक धन्ना नामक सेठ रहता था । जिसके साथ शालिभद्रकी बेनकी शादी हुई थी। वह
धन्नाको स्नान कराती थी, उसे रोती हुइ देख कर धन्नाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com