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( २९ ) वादी, असन्तोषी और मायावी था। उसको नागिला नामकी स्त्री थी, वह मायारहित तथा सत्य-संतोपको धारण करने वाली थी ।
एकदा नाग सेटका नागमित्र नाम: कोई मित्र देशान्तर जाता था। उसकी स्त्री चपला थी. उसके भयसे नागमित्रने अपने पुत्रको कहकर अपना मुवर्ण नाग सेठके पास अनामत (थापण ) रखा और नाग सेठकी स्त्री नागिलाको साक्षीरूप रखी। फिर नागमित्र देशान्तरको गया। वहां प्रचुर धन उपार्जन करके वापिस लौटते हुए रास्तेमें चोर लोगोंने उस पर हमला किया और उसे मार डाला । यह हाल जब उसकी स्त्री तथा पुत्रको मालूम हुआ, तब वे दुःखित होकर शोक करने लगे । कुछ समय व्यतीत होनेके बाद नागमित्रके पुत्रने अपने पिताकी रखी हुइ थापण नाग सेठके पाम मांगी, तब सेठ ना कबुल हो गया और कहने लगा कि,-' मेरे पास तेरे पिताने कुछ भी थापण नहीं रक्खी है ।'
नागमित्रके पुत्रने राजाके पास जा कर बात कही। राजाने कहा कि- तेरे पास कोई गवाही है ? ' उसने कहा कि-'नाग सेठकी स्त्री नागिला मेरी साक्षी देनेवाली है।' तब सेठको प्रथम राजाने बुला कर पूछा, मगर उसने कहा कि-' मेरे पास उसके पिताने कुछ भी थापण नहीं रखी है।' फिर राजाने नागिलाको बुलाकर पूछा, तब नागिला विचार करने लगी कि-' एक ओर तो कूप है और दूसरी ओर वाघ है । यह न्याय मेरा हुआ है। क्योंकि एक ओर भरतार है, भरतारके प्रतिकूल न
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