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गया कि वह धूलि में क्रीडा करती थी । उसको राम नामक एक पुत्र हुआ । किसी समय अतिसार रोगसे पीडित एक विद्याधर इसके आश्रम में आया । यद्यपि यह विद्याधर था, परन्तु अतिसार के प्रभावसे आकाशगामिनी विद्या को भूल गया था । ऋषिपुत्र रामने इस विद्याधरकी औषधादिक द्वारा अनेक प्रकारसे सार - सम्हाल की । जिससे उस विद्याधरने हर्षित हो कर रामको परशु नामक विद्या प्रदान की । रामने इस विद्या को साध लिया । इस विद्या के योगसे वह परशुराम के नाम से जगत् में विख्यात हुआ और देवाधिष्ठित कुठार शस्त्र हाथमें लेकर घूमने लगा ।
किसी समय जमदग्निकी आज्ञा लेकर रेणुका अपनी बहिनको मिलनेके लिये हस्तिनापुर गइ । हस्तिनापुराधीश अनन्तवीर्य राजा रेणुकाको अपनी साली जानकर उसकी हांसी- मश्करी करने लगा, और रेणुकाका अत्यंत सुंदर रूप देख कामातुर हो कर निरंकुशतासे रेणुका के साथ विषयसेवन करने लगा । जिसके कारण रेणुकाको एक ओर भी पुत्र हुआ । तदनन्तर जमदग्नि पुत्र सहित रेणुका को अपने आश्रम में ले आया । उसे पुत्र सहित देख कर परशुरामने क्रोधावेशमें आकर परशुके द्वारा शीघ्र अपनी माता व भाइके मस्तक काट डाले । यह बात श्रवण कर अनन्तवीर्य राजा क्रोधातुर हो कर सेना सहित जमदग्निके आश्रम में आया और इस आश्रम को जला कर नष्ट कर दिया एवं सर्व तापसोंको भी त्रास देने लगा । उन तापसोंकी चिल्लाहट सुन कर परवहाँ पर आया । शुराम । उसने अनन्तवीर्यको मार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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