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रास्ता बिछाये । और दूसरे रास्ते में अनेक छोटे छोटे मेंडकोंकी रचना की । तब वे महात्मा मेंडकोंसे आच्छादित मागको छोड कर जिस रास्ते में कंटक कंकर बिछाये हुए थे, उस रास्तेमें चलने लगे । यद्यपि कंटकके योगसे मुनिके पैरों में से रक्तकी धाराएं बहती थीं, तथापि वह क्षुभित नहीं हुए । तदनन्तर तीसरी परीक्षा में उस साधुके समक्ष देवोंने गीत व नृत्य किये, स्त्रियोंके रूप बनाकर उसको मुग्ध बनानेके लिये बहुत कुछ परिश्रम किया; तथापि वे मोहजित् मुनि मनसे भी किंचिन्मात्र विचलित नहीं हुए । चौथी परीक्षा करनेके निमित्त उन देवोंने निमित्तियाके रूप धारण किये और उस मुनिके समीप आ कर कहने लगे कि - हे महात्मन् ! हम निमित्तशास्त्र के बल से कहते हैं कि तुम्हारा आयुष्य बहुत बाकी है, अतः इस समय यौवनावस्था में भुक्तभोगी हो कर फिर वृद्धावस्थामें चारित्र ले कर तप करना । ' यह श्रवण कर साधुजी कहने लगे कि -' हे सिद्ध पुरुषो ! यदि मेरा आयुष्य बहुत लम्बा होगा तो मैं दीर्घकालपर्यंत चारित्र पालूंगा, जिससे कर्मोंकी अधिकतर निर्जरा हागी । एक और भी बात है - इस लघुवयमें तप भी हो सकेगा, परन्तु जरावस्था प्राप्त होने के बाद विशेष तप नहीं हो सकेगा ।' उस साधुकी इस प्रकार दृढता देख कर दोनों देव हर्षित हुए और जैनधर्मकी प्रशंसा कर आगे चले ।
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आगे चलते हुए उन्होंने, बनमें एक दीर्घकालतपस्वी लम्बी जटावाले, एकान्त स्थानमें ध्यान में रहे हुए
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