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पूछा, तब उनके सामने यथातथ्य बात कह सुनाइ । जब सेठने भी श्रीमहावीरप्रभुकी देशना श्रवण की । तदनन्तर उस स्थविरा ( डोकरी ) में धर्मका गुण जान कर उसको बहुत मान देने लगा। परिणाममें वह डोकरी सुखी हुइ ।"
इस प्रकार प्रभुकी बानीको श्रवण करनेसे कष्ट नष्ट हो जाते हैं । कहा हः
दोहा.
जिनवर वाणी जे सुणे नरनारी सुविहाण । सूक्षम बादर जीवनी रक्षा करे सुजाण ॥ १ ॥
अब श्रीवीरभगवान कहते हैं कि-' हे गौतम ! जो जो प्रश्न तूने मुझसे पूछे हैं; उन सबका सामान्य उत्तर यह है कि-जीव ये सब बातें कर्मके वशीभूत हो कर पाता है, उन कर्मोंका स्वरूप मैं तुझको कहता हुँ, सो ध्यान दे कर श्रवण कर । ' ऐसा कह कर भगवान् अब ४८ प्रश्रों के उत्तर कहते हैं । इनमें प्रथम जीव किस कर्मके योगसे नरक गतिमें जाता है ? इसका उत्तर तीन गाथाओंके द्वारा देते हैं:
जे घायइ सत्ताई अलियं जंपेइ परधणं हरइ । परदारं चिय वच्चइ बहुपावपरिग्गहासत्तो ॥ १५॥ चंडो माणी पिट्ठो मायात्री द्विरो खरो पावो । पिसुणो संगहसीलो साहूणं निंदओ अहमो ॥ १६ ॥
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