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(१०६ ) अब बत्तीसवें प्रश्नका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं।
जाइमओ उमत्तमणो जीवे विकिणइ जो कयग्योय । सो इंदभूइ मरिउं दासत्तं वच्चए पुरिसो ॥ ४७ ॥
अर्थात्-जो जीव जातिमद करे, अहंकार करे यानि जाति कुलादिकके मदसे मदोन्मत्त-उन्मत्त होवे तथा जो मनुष्यादिक जीवोंको बेचे और कृतघ्न होवे अर्थात् अन्यके किये हुए उपकारोंको भूल जावे, परनिंदा करे, आत्मप्रशंसा करे, अन्य प्रशंसनीय व्यक्तिके गुणोंको प्रकट न करे किसी गुणवानकी प्रशंसा न करे, अन्यके अविद्यमान दोष कहे, वह मनुष्य नीचगोत्रकर्म उपार्जन करता है। और है इंद्रभूति ! हे गौतम ! वह पुरुष मर कर दासत्व को प्राप्त होता है, जिस प्रकार हस्तिनापुरमें सोमदत्त पुरोहित पदभ्रष्ट हो कर-मर कर डुंबपुत्र हुआ (४७) उसकी कथा कहते हैं :
“ कुरु देशके हस्तिनापुर नगरमें सोमदत्त नामक पुरोहित रहता था । उसको अनेक मनोरथोंके पश्चात् एक बलभद्र नामक पुत्र हुआ। वह ब्राह्मण जातिके मदसे दूसरे लोगोंको तृण समान गिनता था । नगरमें चलते हुए रास्तेमें पानी छांट कर चलता। राजपुत्रका स्पर्श होता तो तो स्नान करता, प्रायश्चित्त कर लेता । इस प्रकार ब्राह्मणोंके अतिरिक्त इतर जातियोंके ऊपर द्वेष धारण करता और उनकी निंदा करता हुआ केवल अपनी जातिकीही प्रशंसा करता था। लोक . उसकी बहुत हांसी करते, परन्तु उसको जराभी लजा नहीं आती । इस प्रकार वर्तन
पुरोहित नामक पुत्र हुभान गिनता यापुत्रका स्पर्श जाणों के
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