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( १०४ ) किसी यक्षका आराधन किया। यक्षने संतुष्ट हो कर
मांग, मांग,' ऐसा तीन दफे कहा । धनश्रीने कहा कि जिस प्रकार मेरा पति धनदत्त होवे ऐसा आप उपाय कीजिये । तब यक्षने कहा कि-तेरे पिताने दोनों पुत्रियोंका एकही दिन एकही लग्नमें विवाह करनेकी इच्छा की है, उस समय मैं दृष्टिबन्धन करूंगा, तूने धनदत्तके साथ पाणिग्रहण करना, फिर जब वह तेरा पाणिग्रहण करके तुझे अपने घरको ले जायगा, तब मोह दूर होगा । ऐसा कह कर यक्ष अदृष्ट हो गया।
अब विवाहके दिन दोनों वर साथही व्याहने को आये । यक्षने सर्वको मोहित किया। दोनों विवाह करके अपने २ घरको आये। तब धनदत्त तो धनश्रीको अत्यंतही सुरूपा देख कर हर्षित हुआ और धनपाल अपनी परिग्रहिता स्त्रीको कुबडी देख कर उदास हो कर मनमें विचार करने लगा कि-यह कैसी इंद्रजाल हो गइ ! मतिविभ्रम कैसे हो गया ! यह बात राजाने सुनी और गांवलोगोंने भी जानी । लोगोंके समूह मिल कर बातें करने लगे। फिर दोनों वर खीके लिये परस्पर कलह करते हुए राजाके पास गये । राजाने उनको वापिस अपने २ घरको भेज दिये । और धनश्रीको बुला कर एकान्तमें पूछा कि, धनदत्त कूबडा है, वह तेरेको प्रिय न होगा, अतः सचमुच कह कि-तू किसके साथ व्याही है ? यह श्रवण कर धनश्रीने राजाके पास यथातथ्य बात कह दी कि-मैंने मोहके वश हो कर अवश्य इस धनाव हके पुत्रके साथ शादी करनेके लिये ही यक्षका आराधन किया था, वह संतुष्ट हुआ, उसके सानिध्यसे मैं धनदShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com