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है। पद्म सेठने घर आ कर अपने पुत्रको कहा कितूने पूर्वभवमें बहुत पाप किये हैं। वह सुनतेही उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ | फिर मुनिराजके पास आये । उनको वंदना करके व पापकी निंदा करके उसने अनशन किया । मृत्यु पा कर प्रथम देवलोकमें देवता
हुआ।"
अब एकत्तीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं :
गोमहिसखरं करहं अइभारारोवणेण पीडेइ । एएण पावकम्मेण गोयमा सो भवे खुज्जो ॥ ४६ ।।
अर्थात्-बैल, भेंस और ऊंटादिके ऊपर लोभसे अतिभार आरोपण करे और उनके जो पुरुष उक्त जीवोंको पीडा करे, वह जीव निष्केवल इसी पापकर्मके उदयसे निश्चयसे हे गौतम ! खुजो यानि कूबडा होता है । जिस प्रकार धनावह सेठका पुत्र धनदत्त पूर्वभवमें अनेक जीवोंके ऊपर भार वहन करा कर कृबडा हुआ (४६) यहां धनदत्त और धनश्रीकी कथा कहते हैं।
“भूमिमंडन नगरमें शत्रुदमन नामक राजा राज्य करता था। वहां धन्ना नामक सेठ रहता था, उसकी स्त्रीका नाम धीरू था। किरायेका पेशा (व्यवसाय) करके आजीविका चलाता था। उसने अपने यहां पोठ, ऊंट, रासभ और महिषोंका संग्रह किया था । वह सेठ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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