________________
(९६) सुनतेही उस दुर्गध कुमरको जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ। दुःखकी स्मृतिं होनेसे भयभीत हुआ। तब भगवंतमो वंदन कर पूछने लगा कि-मैं इस दोषसे कैसे मुक्त होउंगा ? उसका उपाय कहिए । तब जिनेश्वरने कहा, रोहिणीका तप कर, जिससे सर्व प्रकारसे निराबाध होगा। फिर उस राजपुत्रने रोहिणी तय किया । जिससे उसका शरीर सुगंधमय हुआ । अतः हे दुर्गधा ! तू भी यह तप कर । उसके प्रभावसे सुगंध कुमरकी तरह तेरे सर्व दुःख नष्ट होंगे । ऐसा श्रवण कर उस दुर्गंधाने रोहिणी तप अंगीकार किया। विधिपूर्वक शुभ ध्यानसे तपस्या व आत्माकी निंदा करते हुए दुर्गधीको जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। जिसके योगसे पूर्वभव स्मृतिगोचर हुआ, तब तो फिर भी अधिक रूपसे तप करने लगी। आयु पूर्ण होनेसे शुभध्यान पूर्वक मृत्यु पा कर देवलोकमें देवता रूपसे उत्पन्न हुई । वहांसे चव कर यहां चंपा नगरीमें मघवा राजाकी पुत्री हुई। उसका नाम रोहिणी रक्खा गया। उसके साथ तेरी शादी हुइ । उसने बहुत दान दिया है अतएव वह तुम्हारी पट्टराणी हुइ है। उसने पूर्वभवमें रोहिणी तप किया है जिसके प्रभावसे दुःख क्या चीज है ? वह भी नहीं जानती है। उसने उझमणा ( उत्सव ) किया है जिससे वह ऋद्धिवंत हुई है । फिर हे राजन : इस सिंहसेन राजाने अपने सुगंध कुमरको राज्यपाट दे कर दीक्षा ली। सुगंध राजा राज्य करता हुआ व जैनधर्मका पालन करता हुआ सम्यक्तया धर्मकृत्य करके मृत्यु पा कर देवलोकमें गया। वहांसे चव कर पुष्कलावती विजयमें पुंडरगिणी नगरीमें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com