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किस कर्मके उदयसे जीव हीनरूपवाला याने कुरूप होता है ? (९)
१२ किस कर्मके योगसे जीव अत्यंत वेदनासे पीडित हो कर रहता है ? ४३ किस कर्मसे जीव वेदना रहित हो कर शातामें रहता है ? ४४ किस कर्मके योगसे जीव पंचेंद्रियत्व पाता है ? और ४५ किस कर्मके योगसे जीव एकेन्द्रियत्व पाता है ? ( १० )
४६ किस कर्मके योगसे जीव बहुतकाल पर्यत संसारमें स्थिर हो कर रहता है ? १७ किस कर्मके योगसे पुरुष संसारमें स्वल्प काल रहता है ? एवं ४८ किस कर्मके योगसे जीव संसारसमुद्र तैर कर मोक्ष-नगर प्रति जाता है ? ( ११)
उपर्युक्त ४८ प्रश्नोंको पूछ कर और उत्तरको जिज्ञासा रखते हुए फिर श्रीगौतमस्वामी कहते हैं:
सबजगजीवबंधव सबन्नू सव्वदंसण मुणिंद । सव्वं साहुसु भयवं कस्स व कम्मस्स फलमेयं ॥ १२॥
भावार्थ:-हे भगवन् ! जगत्में रहनेवाले सभी जीवोंके आप बंधव हैं, आप सर्वज्ञ हैं, अर्थात् सर्व वस्तुओंके ज्ञाता हैं, सव्वदंसण अर्थात् केवलज्ञानके द्वारा सर्व वस्तुओंके देखनेवाले हैं, तथा सर्व मुनियोंमें इंद्र हैं, अतः मैंने जो जो प्रश्न किये हैं अर्थात् किन किन कर्मोके उद. यसे उपर्युक्त फल मिलते हैं ? उस विषयकी सर्व बातें आप फरमावे (१२)
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