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और उसका आदर्श अपने जीवनमें उतारने के लिए तत्पर हुई । इस नत्परताका उपशमन करने के लिए ब्राह्मण संस्कृतिने भी राम और कृष्णके मानवीय आदर्शकी कल्पना की और एक मनुष्यके रूपमें उनकी पूजा प्रचलित होगई । महावोर-बुद्ध युगसे पहले राम और कृष्णकी, आदर्श मनुष्यके रूप में पूजा होनेका कोईभी चिह्न शास्त्रोंमें नहीं दिखाई देता । इसके विपरीत महावीर-बुद्ध युगके पश्चात् या उस युगके साथही साथ राम और कृष्णकी मनुष्यके रूपमें पूजा होनेके हमें स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं । इससे तथा अन्य साधनोंसे यह मानने के लिये पर्याप्त कारण हैं कि मानवीय पूजाकी मजबूत नींव महावीर-बुद्ध युगमें डाली गई और देवपूजकवर्गमें भी मनुष्यपूजा के विविध प्रकार और सम्प्रदाय इसी युगमें प्रारम्भ हुए।
मनुष्यपूजामें दैवीभावका मिश्रण । लाखों करोड़ों मनुष्योंके मनमें सैकड़ों और हजारों वर्षोंसे जो संस्कार रूढ़ हो चुके हों, उन्हें एकाध प्रयत्नसे, थोड़ेसे समयमें बदल देना संभव नहीं। इस प्रकार अलौकिक देवमहिमा, दैवी चमत्कार
और देवपूजाकी भावनाके संस्कार प्रजाके मानसमें से एकदम न निकल सके थे। इन्हीं संस्कारों के कारण ब्राह्मण संस्कृतिने यद्यपिराम
और कृष्ण जैसे मनुष्योंको आदर्शके रूप में उपस्थित करके उनकी पूजा प्रतिष्ठा शुरूकी, तथापि प्रजाकी मनोवृत्ति ऐसी न बन सकीथी कि वह दैवीभावके सिवाय और कहीं संतुष्ट होसके । इस कारण ब्राह्मण संस्कृति के तत्कालीन अगुवा विद्वानोंने, यद्यपि राम और कृष्णको एक मनुष्यके रूपमें चित्रित किया, वर्णित किया, तो भी उनके भान्तरिक भोर पाप जीवन के साथ अदृश्य देवी अंश और भरय दैवी कार्यका सम्बन्ध भी जोड़ दिया। इसी प्रकार महावीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com