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(४०) द्रवियोंका कृष्णके द्वारा प्राणनाश ही दिखाई पड़ता है । जैसे पृथ्वी. राजने शाहबुद्दीनको छोड़ दिया उसी प्रकार कंसके भेजे हुए उपद्रवियोंको कृष्ण द्वारा जीते छोड़नेकी बात जैनग्रन्थों में पढ़नेको मि. लती है । यही नहीं बल्कि सिवाय कृष्णके और सब पात्रोंके जैनदीक्षा स्वीकार करनेका वर्णन भी हम देखते हैं। ____ हाँ, यहाँ एक प्रश्न हो सकता है ! वह यह कि मूलमें वसुदेव, कृष्ण आदिकी कथा जैनग्रन्थों में हो और बादमें वह ब्राह्मण ग्रन्थों में भिन्न रूपमें क्यों न ढाल दी गई हो ? परन्तु जैन आगमों तथा अन्य कथाग्रन्थों में कृष्ण-पाण्डव आदिका जो वर्णन किया गया है उसका स्वरूप, शैली आदिको देखते हुए इस तर्क के लिए गुंजाइश नहीं रहती। अतएव विचार करने पर यही ठीक मालूम होता है. कि जब जनतामें कृष्णकी पूजा प्रतिष्ठा हुई, और इस संबंधका ब. हुतसा साहित्य रचा गया और वह लोकप्रिय होता गया तब समयः सूचक जैन लेखकोंने रामचन्द्र की भाँति कृष्णको भी अपनालिया
और पुराणगत कृष्ण-वर्णनमें, जैन दृष्टिसे प्रतीत होनेवाले हिंसाके विषको उतार कर उसका जैन संस्कृति के साथ सम्बन्ध स्थापित कर दिया। इससे अहिंसाकी दृष्टिसे लिखे जाने वाले कथासाहित्यका विकास सिद्ध हुआ।
जब कृष्ण-जीवनके ऊधम और श्रृंगारसे परिपूर्ण प्रसंग जनता में लोकप्रिय होते गए तब यही प्रसंग एक ओर तो जैनसाहित्यमें परिवर्तनके साथ स्थान पाते गए और दूसरी ओर उन पराक्रमप्रधान अद्भुत प्रसंगोंका प्रभाव महावीरके जीवन-वर्णन पर होता गया, यह विशेष संभव है। इसी कारण हम देखते हैं कि कृष्णके जन्म, बालक्रीड़ा और यौवनविहार आदि प्रसंग, मनुष्य या अ.
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