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( ३० ) प्रथम श्रुतस्कंधका रूप और भी प्राचीन है। यह बात हमें ध्यानमें रखनी चाहिये । अंगके बादके साहित्यमें आवश्यक नियुक्ति और उसका भाष्य गिना जाता है, जिनमें महावीरके जीवनसे सम्बन्ध रखनेवाली उपर्युक्त घटनाओं का वर्णन है । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि यद्यपि नियुक्ति एवं भाष्यमें इन घटनाओंका वर्णन है तथापि वह बहुत संक्षिप्त है और प्रमाणमें कम है। इनके बाद इस नियुक्ति और भाष्यकी चूर्णिका समय आता है। चूर्णिमें इन घटनाओं का वर्णन विस्तारसे और प्रमाणमें अधिक पाया जाता है ।
चूर्णिका रचना काल सातवीं या आठवीं सदी माना जाता है । मूल नियुक्ति ई० सं० से पूर्वकी होने पर भी इसका अन्तिम समय ईसा की पाँचवीं शताब्दीसे और भाष्यका समय सातवीं शताब्दीसे अर्वा. चीन नहीं है । चूर्णिकारके पश्चात् महावीर के जीवन की अधिक से . अधिक और परिपूर्ण वृत्तान्तकी पूर्ति करनेवाले आचार्य हेमचन्द्र हैं। हेमचन्द्र ने त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित्रके दशम पर्वमें तमाम पूर्ववर्ती महावीर-जीवन सम्बन्धी ग्रन्थोंका दोहन करके अपनी कवित्व की कल्पनाओंके रंगमें रँगकर महावीरका सारा जीवन वर्णन किया है । इस वर्णनमें से ऊपर जिन घटनाओंका उल्लेख किया गया है वे समस्त घटनाएँ यद्यपि चूर्णिमें विद्यमान हैं, तथापि यदि हेमचन्द्रके वर्णनको और भागवतके कृष्ण-वर्णनको सामने रखकर एक साथ पढ़ा जाय तो जरूर ही मालूम पड़ने लगेगा कि हेमचन्द्रने भागवतकारकी कवित्व शक्तिके संस्कारोंको अपनाया है। __अंग साहित्यसे लेकर हेमचन्द्र के काव्यमय महावीर-चरित तक, हम ज्यों ज्यों उत्तरोत्तर आगे बढ़ते-बाँचते-हैं, त्यों त्यों महावीरके जीवनकी सहज घटनाएँ कायम तो रहती हैं मगर उनपर देवी और .चमत्कारी घटनाओंका रंग अधिकाधिक भरता जाता है। अतएव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com