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पुरुषोंकी पूजा या मान्यता प्रचलित थी और अब भी है । अतएव इन पूज्य पुरुषोंके आदर्श मूलतः भिन्न भिन्न होने पर भी बाद में उनमें आपसमें बहुतसा लेनदेन हुआ है और एक दूसरेका एक दूसरे पर बहुत प्रभाव पड़ा है । वस्तुस्थिति इस प्रकारकी होनेपर भी यहाँ पर सिर्फ धर्मवीर महावीरके जीवनके साथ कर्मवीर कृष्णके जीवन की तुलना करनेका ही विचार किया गया है। इन दोनों महान पुरुषों के जीवन-प्रसंगोंकी तुलना भी उपयुक्त मर्यादाके भीतर रहकर ही करनेका विचार है । समग्र जीवनव्यापी तुलना एवं और चारों पुरुषों की एक साथ विस्तृत तुलना करनेके लिये जिस समय और स्वास्थ्य की आवश्यकता है, उसका इस समय अभाव है। अतएव यहाँ बहुत ही संक्षेपमें तुलना की जायगी। महावीरके जन्मक्षणसे लेकर केवलज्ञानकी प्राप्ति तकके प्रसंगोंको कृष्णके जन्मसे लेकर कंसबध तक की कुछ घटनाओंके साथ मिलान किया जायगा।
यह तुलना मुख्य रूपसे तीन दृष्टि-बिन्दुओंको लक्ष्य करके की जायगी
(१) प्रथम तो यह फलित करना कि दोनोंके जीवनकी घटनाओंमें क्या संस्कृतिभेद है ?
(२) दूसरे, इस बातकी परीक्षा करना कि इस घटनावर्णन का एक दूसरे पर कुछ प्रभाव पड़ा है या नहीं ? और इससे कितना परिवर्तन और विकास सिद्ध हुश्रा है ?
(३) तीसरे, यह कि जनतामें धर्मभावना जागृत रखने और सम्प्रदायका अाधार सुदृढ़ बनाने के लिए कथाग्रंथों एवं जीवनवृत्तान्तोंमें प्रधान रूपसे किन साधनोंका उपयोग किया जाता था, इसका पृथकरण करना और उसके औचित्यका विचार करना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com