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वन्दे वीरमानन्दम्।
वक्तव्य
शीलं प्राणभृतां कुलोदयकरं शीलं वपुर्भूषणं, शीलं शौचकर विपद्भयहरं दौर्गत्यदुःखापहम् । शीलं दुर्भगतादिकन्ददहनं चिन्तामणिः प्रार्थिते, व्याघ्रव्यालजलानलादिशमनं स्वर्गापवर्गप्रदम् ॥१॥ __ " तवेसु वा उत्तमबंभचेरं"
___ सूत्रकृतांग. "स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू जो सुद्धं चरति बंभचेरं"
[प्र. व्या०] पूर्वोक्त आर्षवचनोंसे सिद्ध है ब्रह्मचर्य एक सर्वोत्तम गुण है । कुलका उदय करनेवाला, शरीरको भूषित करनेवाला, पवित्रता-शौच करनेवाला, विपदा और भयको हरनेवाला, दुर्गति-दुरवस्था और दुःखोंका नाश करनेवाला, दौर्भाग्य आदि अशुभ कर्म प्रकृतिकी जड़को दाह-भस्म करनेवाला, प्रार्थना करनेवालोंको चिन्तामणिके समान चिन्तित-मनोवांछित देनेवाला, व्याघ्र-सर्प-जल-अग्नि आदिके उपद्रवोंको शान्त करनेवाला, यावत् स्वर्ग और मोक्षको देनेवाला शील-ब्रह्मचर्य है।
"सर्व प्रकारके तपमें उत्तम तप ब्रह्मचर्य है," "वही खरा ऋषि, वही सच्चा मुनि, वही पक्का संयमी और वही यथार्थमें भिक्षु है, जो शुद्ध ब्रह्मचर्यको सेवन करता है"
श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र-दशमे अंगमें ब्रह्मचर्यकी महिमा इस प्रकार वर्णन की गई है।
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