________________
ग़ज़ल. उठो धर्मवीरो सहर होगई है, कि अब रात सारी बसर होगई है। तुम्हें कुंभकरणी छमासी है छाई, तबाह कौम अपनी मगर होगई है ॥१॥ पड़ी कौमकी कौम बेहोश उफ़ क्या? किसी बदनज़रकी नज़र होगई है ॥२॥ निकालो दिलोंसे अगर बुज़दिलीको। तो समझो मुँहिम एक सर होगई है ॥ ३ ॥ छुपाया हज़ार अपनी कमजोरियोंको। मगर अब तो घर घर खबर होगई है ॥ ४ ॥ सँभलकर चलो राह हुब्बेवतनकी। ये लाइन भी अब पुरख़तर होगई है ॥५॥ जगानेसे मेरे अगर जैनी जागें। . . तो समझो गज़ल पुरअसर होगई है ॥ ६॥
.
M...
१ प्रभात. २ बीतगई है. ३ कायरता. ४ कठिनाई. ५ देशप्रेम. ६ भयपूर्ण. ७ प्रभावोत्पादक.
4.
Printed by Ramchandra Yesu Shedge at the : "Nirnaya-sagar" Press, 26-28, Kolbhat Lane, Bombay.
Published by Bhogilal Tarachand Javeri,
Doshiwada Pole, Ahmedabad . ......... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com