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दोहरा। सर्व विरति मुनि धर्म है, भाषे त्रिभुवन भूप । त्रिविध त्रिविधसे जानिये, पंच महाव्रत रूप ॥१॥ प्रथम अहिंसा दूसरा, झूठ बोलना त्याग । त्याग अदत्तादानका, मैथुन चौथे त्याग ॥२॥ त्याग परिग्रह पंचमे, ये हैं सब गुण मूल । चरण करण अनुयोगसे, जिनवर वचन अमूल ॥३॥ लोकसार जिन धर्म है, धर्म सार शुभ नाण । ज्ञानसार संयम कहा, संयमसे निर्वाण ॥ ४॥ संयम सतरां भेदसे, दश यति धर्म पुनीत । सवमें आदर शीलको, श्रीजिन शासन रीत ॥ ५ ॥
(गिरिवर दर्शन विरला पावे-यह चाल) चारित्र उत्तम जिन फरमावे ॥ अंचली। ज्ञानवान पिण चरण विहीना। पंगू सम नहीं इष्टको पावे ॥ चारित्र० ॥१॥ चय सो अष्ट करमको संचय । खाली करना रिक्त कहावे ॥ चारित्र० ॥२॥ चारित्र नाम निरुक्के भाष्यो। चरणानंतर मोक्ष सधावे ॥ चारित्र० ॥३॥
१ पवित्र । २ जिनको यह चालं मालूम न होवे वह पीलूमें गासकते हैं। ३ पंगू लूला-जो बिलकुल चल फिर न सके। “हयं नाणं कियाहीणं हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दडो धावमाणो. उ. अंधलो।" [आवश्यक]
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