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सकते हैं । इसलिये उनकी नजरके सामने पूजाकी समाप्ति होनेके कारण श्रीवासुपूज्य स्वामीका नाम अंत्यमंगलरूप लिया गया है। __ मुझे इस पूजाकी समाप्तिमें अधिक आनंद इसलिये हुआ है कि-चारित्र-ब्रह्मचर्यकी तो पूजा ब्रह्मचारी श्रीपार्श्वनाथस्वामीकी सेवामें इस पूजाका प्रारंभ, ब्रह्मचारी ही श्रीवासुपूज्यस्वामीके सन्मुख इस पूजाकी समाप्ति, और वहभी बालब्रह्मचारी श्रीनेमिनाथ स्वामी के जन्म कल्याणकके दिनमें ही । मानो बालब्रह्मचारी श्रीनेमिनाथस्वामीका जन्मदिन ही इस पूजाकाभी जन्मदिन ! सत्य है ! ब्रह्मचर्य होवे तभी तो ब्रह्मचारी होता है । ब्रह्मचर्य गुणसहित ही तो गुणी ब्रह्मचारी प्रभु श्रीनेमिनाथ स्वामी हुए हैं। इसलिये दोनों गुण और गुणीका जन्मदिनभी एक ही होना चाहिये !
इस कृतिमें श्रीजिनहर्षकविकी और श्रीउदयरत्नकविकी कृतिकी कुछ झलक अवश्यमेव आवेगी। क्योंकि इन दोनों महात्माओंकी रची 'नव वाडकी सज्झाय' सन्मुख रखकरके ही यह कृति तयार की गई है, जिसमें भी खास करके श्रीजिनहर्पकविकी कविताका आधार अधिक लिया गया है । और वह भी यहांतक कि, पांचमी पूजाकी दूसरी ढाल तो कहीं कहीं अक्षर बदल. के और चाल बदलके जैसीकी वैसी ही ली गई है। इसलिये इस बाबत पूर्वोक्त दोनोंही महात्माओंका सहर्ष धन्यवाद प्रगट करना उचित ही समझा जाता है। ___ अवश्य करने योग्य कितनीक बातोंका खुलासा परिशिष्ट नंबर (१) में किया गया है । तथा प्रस्तुत पूजामें कितनेक दृष्टांत सूचित कियेगये हैं, उनका खुलासा कुछ संक्षेपरूपमें कथानकोंद्वारा, पंन्यास-ललित वि० से लिखवा कर, परिशिष्ट नंबर (२) में दिया गया है । वाचकवर्ग दोनों परिशिष्टोंको पढ़कर अवश्य लाभ उठावें! __ यद्यपि इस पूजामें ब्रह्मचर्यकी मुख्यता है, ब्रह्मचर्यकी नव वाड़ोंहीका प्रकारांतरसे वर्णन है, और इसीलिये इसका नाम "ब्रह्मचर्यव्रतपूजा" रखा है, तथापि प्रारंभमें चारित्रका कुछ वर्णन दिया गया है। ब्रह्मचर्य चारित्रसे भिन्न नहीं है। ब्रह्मचर्य विना चारित्र नहीं और चारित्रके विना ब्रह्मचर्य नहीं इस अभिप्रायसे, तथा "सम्यग्-दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com