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जिसवक्त वकील केशवलालभाईने सेठ मंगलभाईका संदेशा सुनाया और प्रार्थना करी उसवक्त पासमें बैठेहुए पंन्यास ललित वि० ने भी जोर दिया कि, बहुत समय हो गया अब तो इनकी प्रार्थनाकी सुनाई होजानी चाहिये, और सुनाईभी यहांहीं होवे कि जिससे केशवलालभाईका वकील होनाभी सार्थक होजावे! क्योंकि केशवलालभाई भोगीलालभाईके परम मित्रभी हैं।
ज्ञानीने अपने ज्ञानमें ऐसा ही देखाथा ! समय आमिला । द्रव्यक्षेत्रकाल-भाव-चारोंही एकत्रित होगये । पूजा बननी शुरू हो गई । मालेरकोटलामें श्रीजगवल्लभ पार्श्वनाथ स्वामीके निकटवर्ति स्थानमें प्रारंभ होनेसे मंगलाचरणमें इष्टदेवतरीके यह नाम आना योग्यही है।
प्रथम पूजा वकील साहबके सामनेही बनगई, उनको सुना दी गई और उन्हीकी मारफत भोगीलालभाईको वधाई भी दी गई कि, आपकी चीज बननी शुरू हो गई है। परंतु भवितव्यता " श्रेयांसि बहुविघ्नानि" समाप्तिके लिये क्षेत्र और काल ज्ञानीके ज्ञानमें अनुकूल नहीं था । बस प्रथम पूजा बनीही पडी रही ! किंतु साथमें पंन्यास ललित वि० की प्रेरणा जैसी की वैसी ही जारी रही ! जिसका कारण कार्य अवश्यही होना था। गुरुकृपासे यथाशक्ति यह उद्यम, यहां शहर होशियारपुर (पंजाब) में पूर्ण हो गया है । और इसीलिये समाप्तिमें 'श्रीवासुपूज्य' स्वामीका नाम अंतिम मंगलरूप रखा गया है । क्योंकि इस शहरमें दो श्रीजैनमंदिर हैं, एक पुराना और दूसरा नया । नयामंदिर स्वर्गवासी लाला गुजरमल्ल ओसवाल नाहर गोत्रीयने बनवाया है। जिसके शिखरका गुंबज साराही सोनेसे मढ़ा हुआ है । जिसकी प्रतिष्ठा स्वर्गवासी गुरुमहाराज १०८ श्रीमद्विजयानन्दसूरि ( आत्मारामजी) महाराजके हाथसेही विक्रम संवत् १९४९ माघसुदि पंचमीको हुई है।
पुराने श्रीजिनमंदिरमें मूलनायक श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ हैं और नूतन मंदिरमें श्रीवासुपूज्य खामी हैं । मैनें जिस उपाश्रयमें बैठकर यह पूजा समाप्त की है वह मकान, लाला गुजर मल्लजीका ही है और श्रीमंदिरजीके पासमें है। यहांतककी उपाश्रयमें खड़े खड़े सन्मुख प्रभुके दर्शन हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com