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________________ ते बावीस वाणीया धनधान्यादिके वृद्धि पामवाथी पोतानी भुनाओ उच्छालशे महा अभिमानी थशे, कुदस्य, गुंजारव करशे, अने हजारो पुरुष स्त्रीओनो आगळ आ प्रमाणे प्ररूपणा करशे. ए अमारो आ धर्म साचो छे. अर्थ अने परमार्थ अमारो धर्मज छे. बाकी सर्वे अनर्थ छे. हे मनुष्यो जुवो अमने इहलोकमांज प्रत्यक्ष धर्मर्नु फल मले छे तो आगलगें तो कहेवुजशुं! ते माटे तमे पण अमारा धर्मर्नु अनुष्ठान अंगीकार करो; एम कही निजमति कल्पित नवीन मार्गने स्वच्छपणे प्ररूपशे, एम निश्चे हे अग्निदत्त! ते बावीस वाणीया, श्रावक धर्मथी भ्रष्ट थइने षट्दर्शन मांहेथी एके दर्शनने नही मानता अने स्वकल्पित मार्गनी प्रभावना करता असंख्यात काल सुधीर्नु दुर्लभ बोधिपणुं उपार्जन करशे, ते अवसरे हे अग्निदत्त ! भगवंतना प्ररूपेला श्रुतनी हीलना थशे, ते वखते श्रुतहीलना थये छचे श्रमण-निग्रंथो पूजा सत्कार आदर सन्मान नही पामे, तथा धर्मर्नु पालवू अति दुष्कर थशे, वलो हे अग्निदत्त ! ते दुष्ट बावीस वाणीया पन्नर वर्ष तक गृह कृत्य करी-चार गतिमा भ्रमण करावनार x x x x x x ए बेना नामथी प्रसिद्ध थयेल साधु पर्यायने नवाणु वर्ष पालीने सोल महारोगनी पीडाथी पराभव पामता आर्तध्यानने वश थयेला कालावसरे काल करीने घमा नामनी प्रथम नरक पृथवीने पहेले पाथडे दश हजार वर्षने आउखे नारकीपणे उपजशे (भव ६४) त्यार पछी कर्मने बसे तेहज मिध्यात्वभावने पडिवजता थका ( अंगीकार करता) नाना प्रकारनी योनिमां उपजशे, अने घणो संसार परिभ्रमण करशे. वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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