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________________ मदिरा) अने मांसना आहारयी परवश थयेला तथा कामलता नामे गणिकाने विषे आसक्त थयेला बावोस (२२) गोठील पुरुषो (मित्रो) भेगा थइने ते उद्यानमां सदाकाल विचरे छे-फरे के (भव.१)। त्यां प्रतिमाए रहेल अग्निदत्त मुनिने देखीने, मदांध दयारहित महापापी ते बावीस पुरुषो अति तीक्ष्ण शस्रो हायमां लेइ समकाले साधुने हणवा दोडया। दोडतां वचमा रहेल अंधकूपमा समकाले सर्वे पुरुषो पडया, अने मांहोमांहे शस्त्रे हणाया छता मरणने शरण थया. ते देखी कृपालु मुनि विचार करवा लाग्या। हा हा खेदनी वात छे के ए विचारा रांकडा मनुष्यपणु पाम्याछतां जिनधर्मथी वंचित रही अकाले जीवितव्यथी रहित थइ क्या उप. ज्या हशे ते ज्ञानी जाणे । इम चिंतवी काउसग्ग पारीने अग्निदत्त मुनि त्यांथी चाल्या, अने ज्यां गुरुना गुरु (यशोभद्रमूरि) छे, त्यां आवी इर्यावही पडिक्कमिने-गमणागमणे आलोइने । गुरुमहाराज प्रत्ये वंदन करे-याने प्रथम श्री यशोभद्रसूरिजीने वांदी पछी श्री भद्रबाहुस्वामी तथा श्री संभृतिविजयसूरिने नमस्कार करीने पछी गुरुमहाराज श्री यशोभद्रसूरिजीनी आगल हाथ जोडीने प्रश्न करे-पुच्छे । अथ प्रश्न-हे भगवन् ! ते महा अधर्मि बावीस गोठिल पुरुषो अकाले मरण पामी क्या उत्पन्न थया. अयवा कर्मवसे कइ योनिमंडलमां परिभ्रमण करस्ये तथा ते बावीस पुरुषो | ? सुलभ बोधि छे अथवा दुर्लभबोधि थास्ये ए प्रश्ननो मारो शंसय कृपा करी निवारो. त्यारे तुंगियायण गोत्रवाला त्रणज्ञानयुक्त तया दृष्टिवादे भावित अन्तःकरणवाला ते यशोभद्रगुरु श्रुतज्ञाननो उपयोग www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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