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यशे, वली शुद्धि पत्रक करवा छतां पण दृष्टि दोषने लइने काइ अशुद्धि रही होय तेने सज्जन पुरुषो सुधारी वांचशे अने लखी जणावशे तो पुनरावृत्तिमां तेनो सुधारो करवा सूचनानो उपयोग यशे. ए रीते आ पुस्तकमां नाना नाना दश ग्रंथो प्रसिद्ध थवा पाम्या छे. आ पुस्तकने छपाववामां उपरोक्त श्रेष्टीवर्य श्री होराचंदभाइये घणीज महेनत लोधी छे तेथी आ स्थले तेमनो धन्यवाद आपवो योग्य छे, तेनी साथे आवा उत्तमोत्तम कार्यों करवामांज तेमणे पोतानी संपूर्ण जींदगी अर्पण करी छे ते जांणी कयो पुरुष तेमने धन्यवाद आप्या शीवाय रहेशे इतिशम्. ॐ शान्तिः ३
सी. पंन्यास पदालंकृत श्रीमान् उमेद विजयजी
गणीश्वर चरणोपासक मुनि कान्तिविजय.
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