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________________ बढ़नेस । यद्यपि यह बात सच्ची है कि, कई एक निर्लज और हीन कुलकी विधवाएँ अपनी मर्यादा सँमाल कर नहीं रहती, इसलिए वे बालहत्या जैसा नीचसे नीच काम कर डालती हैं; परन्तु उसका विधवा-विवाहके प्रचारसे रुकनाना असंभव है। विधवा-विवाहसे तो और भी ज्यादा अनर्थ खड़े होंगे । इसलिए ऐसी हत्याओंका मूल क्या हे ? ढूँढ कर उसको नष्ट करना चाहिए । अगर हम विचार करेंगे तो मालुम होगा कि, वास्तवमें विधवाओंकी वृद्धिका मूल कारण बालविवाह और वृद्धविवाह है। इसलिए विधवाविवाहका प्रचार न कर इन दोनों बातोंको सख्तीके साथ रोकना चाहिए । यदि इन दोनों बातोंका नाश हो जाय, तो विधवाओंकी वृद्धि आप ही कम हो जाय । इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि, सर्वथा विधवाएँ होंगी ही नहीं । कर्मके कारण कुछ विधवाएँ हो भी जायँ तो उनके लिए अच्छे अच्छे विधवाश्रम खोलकर उसमें विधवाओंको उत्तम शिक्षा दी जाय, जिससे थोड़े अंशोंमें जिस अनर्थके होनेकी संभावना रहती है वह भी मिट जाय । इसलिए जो मनुष्य बाल-हत्याका कारण आगे कर विधवाविवाहका प्रचार करना चाहते हैं, उनको दीर्घदृष्टि से विचार करना चाहिए । विचारोंके अभावसे और दुराग्रहके परिणामसे विद्वान् भी उल्टे मार्गपर खिंचे चले जाते हैं। यह बात कभी नहीं भूलना चाहिए कि, भारतमें सत्य, प्रेम और ब्रह्मचर्य इन तीन वस्तुओंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034783
Book TitleBramhacharya Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Lilavat
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1925
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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