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आहा ! कैसा सुंदर भाव ! कैसी सुंदर मर्यादा ! कैसा सुंदर ब्रह्मचर्य ! ऊपरके दृष्टांतोंसे हम यह जान सकते हैं; देख सकते हैं कि, वीर्यकी-ब्रह्मचर्यकी स्खलना करनेवाला मनुष्य अपने कार्यमें सफल नहीं होता । ब्रह्मचर्यका थोडासा खंडन भी समय आनेपर सफलतामें वाधा डालता है । ये तो बहुत दूरके उदाहरण हुए । अब हम यहाँ एक अनुभूत दृांत देंगे ।
थोड़े सालके पहिले महेसाणेमें दो जबरदस्त मल्लोंकी कुश्ती हुई । उनमेंसे एक लारी-खींचनेवाला था और दूसरा मंदिरका नौकर था । लारी खींचनेवाले मल्लसे मंदिरका नौकर मल्ल बहुत मजबूत था । उसने कई मल्लोंको जीता था। इस कुश्तीमें मंदिरके नौकर मल्लने बहुत दाव पेंच किये, परन्तु आखिर उसे उस लारी खींचनेवाले मल्लने चित्त डाल कर हरा दिया । इत मल्लसे जब एकान्तमें पूछा गया कि, कई अच्छे अच्छे मल्लोंको तुमने हराया है और इस समय इससे तुम कैसे हार गये ! तब उसने खिन्न होकर यही कहा कि, मैंने एकसमय अपना वीर्य कुमार्गमें नष्ट कर दिया। इसीका यह परिणाम है। ब्रह्मचर्य से लाभ ।
उक्त बातोंसे पाठक यह समझ सकते हैं कि, वीर्यकी हानि, मनुष्यको सब कामोंमें हानि पहुँचाती है । इसलिए हम एक विद्वानके शब्दोंमें कहेंगे कि, मनुष्यको वीर्यकी उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि, दीपकको तैलकी आवश्यकता है । जैसे
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