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उपस्थित होनेपर भी मनको अधिकारमें रख, विषय वासनासे वंचित रहना यह कठिन काम नहीं है । इसीतरह मनपर अधिकार नहीं रखनेवाले मनुष्य स्त्रीको देखदेख कर पागल हो जाते हैं । परन्तु गृहस्थोंको अपने योग्य ब्रह्मचर्यका पालन अवश्य करना चाहिए । गृहस्थोंके-च्याहे हुओंके ब्रह्मचर्यकी यदि व्याख्या करें तो वह इतनी हो सकती है कि-"संतति उत्पन्न करनेके लिए, अपनी विवाहिता स्त्रीके साथ योग्य समयपर ही संबंध करना । अनियमित और वारंवार नहीं।" यही गृहस्थों का ब्रह्मचर्य है।
इस नियमसे जो मनुष्य उलटा वर्ताव करते हैं, वे ब्रह्मचर्यका भंग करते हैं । कई ऐसा समझते हैं कि, ब्याह करनेके पश्चात वेश्यागमन या परस्त्रीसेवन करना ब्रह्मचर्यका भंग करना है, परन्तु वस्तुतः ऐसा नही है। 'वेश्यागमन ' या ' परस्त्रीसेवन ' यह तो एक प्रकारका दुराचार है; परन्तु ब्रह्मचर्यका भंग तो अपनी स्त्रीके साथ संबंध करनेसे भी होता है। जैसेअनियमित और अयोग्य वर्ताव रखना, वीर्यका हदसे ज्यादा व्यय करना, स्त्रीको इच्छा बिना जबरदस्तीसे विषयसेवन करना, समय कुसमयका विचार न रखना, रजस्वला, सगर्भा और व्याधिग्रस्त स्त्रीके साथ संबंध करना वगैरा, ये सब 'ब्रह्मचर्य का भंग करनेके ही लक्षण हैं । इस ब्रह्मचर्यके भंगको यदि हम 'व्यभिचार ' कहें तो भी कुछ बुरा नहीं होगा। थोड़ेमें कहें
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