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________________ करते हुए नजर आते हैं, उनमें से प्रायः बहुतसे ऐसे ही हैं । हनारों ही नहीं बल्के लाखों मनुष्योंमें से भी दोचार ही ऐसे दिखाई देंगे जो विवाहित हो जाने पर शास्त्रोक्त विधिके अनुसार काम-पुरुषार्थको साधते होंगे। इस कामपुरुषार्थका अर्थ क्या होता है और उसकी साधना कैसे करनी चाहिए ? इस बातका विशेष रूपसे स्पष्टीकरण करनेके पहिले हम एक आवश्यक बातकी ओर पाठकोंका ध्यान खींचना समुचित समझते हैं । वह यह है कि, व्याह किसके साथ करना चाहिए ! शास्त्रकारोंने ब्याहको, गृहस्थ जीवनके मर्यादित बनानेका कारण भी मान रक्खा है । इसी लिए कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्य अपने योगशास्त्रमें लिखते हैं कि: "कुल-शीलसमैः सार्द्ध कृतोद्वाहोऽन्यगोत्रः" अर्थात् जिसका कुल और शील समान हो और जो अन्य गोत्रीय हो उनके साथ ब्याह-संबंध-करनेवाला ही धर्मके लायक हो सकता है। ___ यह छोटासा वाक्य बढ़ा गूढ अर्थपूर्ण है। सबसे पहिली बात तो यह है कि, पुरुष और स्त्री दोनों उत्तम कुलके होने चाहिए। अर्थात् उत्तम कुलके पुरुषको उत्तम कुलकी स्त्रीके साथ ही ब्याह करना चाहिए । पुरुष उत्तम कुलका हो और स्त्री अधम कुलकी हो या स्त्री उत्तम कुलकी हो और पुरुष अधम कुलका हो तो उस जोड़ीमें-दम्पतिमें-परस्पर प्रेम नहीं होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034783
Book TitleBramhacharya Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Lilavat
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1925
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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